डॉ. आईदानसिंह भाटी
मरुधर मांय मलंग खेजड़ी |
पंछी छांय , पलंग खेजड़ी ||
आयै बरस सरब सब होमै |
जबरौ जीवण ढ़ंग खेजड़ी ||
मिमझर-लूंख,सांगरी-खोखा|
कदै न हाथां तंग खेजड़ी ||
कैर-बोरड़ी, जाळ-रोहीड़ा |
कूंबटियां रै संग खेजड़ी ||
छिनवा-छपना,काळ-दुकाळां|
दीना अपणा अंग खेजड़ी ||
दिवस अठारै अरजण जूझ्यौ|
जीयाजूण भर जंग खेजड़ी ||
लू री लपट, आंधियां-ऊजङ|
उभी बजावै चंग खेजड़ी ||
अगन-झाळ में हरियल-हंसी|
देखै दुनिया दंग, खेजड़ी ||
थारै सारूं जूंझ-कट्या जो|
रंग रै माणस, रंग खेजड़ी||
उभी थान्भियां,हाथां आभौ|
नेजाधार - निहंग खेजड़ी ||